pragativad ki visheshta प्रगतिवादी युग की विशेषता, प्रवर्तक, नामकरण, परिभाषा, समय सीमा,दो प्रमुख प्रवृत्तियां[ class 10th 12th Important questiona ]
प्रगतिवादी युग
प्रगति शब्द का अर्थ है आगे बढ़ना ।अर्थात् वह बाद है जो आगे बढ़ने में विश्वास रखता है। प्रगतिवादी कविता में राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक शोषण से मुक्ति का स्वर प्रमुख है।इस पर कार्ल माक्स विचार धारा का प्रभाव है।
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1.शोषितो के प्रति सहानुभूति -प्रगतिवादी कवियों ने किसानों मजदूरों पर किए जाने वाले पूंजी पतियों के अत्याचारों के प्रति अपना विद्रोह व्यक्त किया है।
2.सामाजिक यथार्थ का चित्रण- प्रगतिवादी कवियों ने सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया है उन्होंने गरीबी भुखमरी अकाल और बेरोजगारी आदि विभिन्न समस्याओं का वर्णन किया है .
3.नारी शोषण के विरुद्ध मुक्ति का स्वर- प्रगतिवादी कवियों ने नारी को उपभोग की वस्तु नहीं समझा बल्कि उसे एक प्रतिष्ठित स्थान दिया है नारी को शोषण से मुक्त कराने के लिए उन्होंने प्रयास किए हैं।
4.ईश्वर के प्रति अनास्था- इस काल के कवियों ने ईश्वर के प्रति आस्था का भाव व्यक्त किया है उन्होंने ईश्वरीय शक्ति की तुलना में मानवीय शक्ति को अधिक महत्व दिया है।
5.प्रतीकों का प्रयोग- अपनी भावनाओं की स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए इस काल के कवियों ने प्रतीकों का सहारा लिया है।
6.आर्थिक व सामाजिक समानता पर वल - इस युग के कवियों ने आर्थिक एवं सामाजिक समानता पर बल देते हुए निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के अंतर को समाप्त करने पर बल दिया।
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प्रगतिवादी युग के प्रमुख कवि
1.नागार्जुन-योगधारा सतरंगी पंखों वाली प्यासी पथराई आंखें ।
2.केदारनाथ अग्रवाल - युग की गंगा ,फूल नहीं रंग बोलते हैं ,नींद के बादल ।
3.त्रिलोचन- धरती, मिट्टी की बारात ,में उस जनपद का कवि हूं ।
4.सुमित्रानंदन पंत - युगवाणी , ग्राम्या ।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - कुकुरमुत्ता