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BA 1st Year History Question paper download 2023

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BA 1st Year History Question paper download 2023


Topic Covered in this article :-

1. Ba history 1st year Syllabus 2022-23
2. Ba history 1st year handwriting Notes PDF
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BA 1st year year history Notes PDF, Syllabus, Important questions For All Universities:

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नमस्कार साथियों इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं BA 1st year  के question paper   syllabus के बारे में बताने जा रहे हैं, जैसा की आप सभी को पता होगा कि नवीन शिक्षा नीति पद्धति के अनुसार BA 1st  year syllabus मैं आपको 3 प्रश्न पत्र लिए जाएंगे , अगर नहीं पता तो कोई बात नहीं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताया जाएगा इसलिए इस आर्टिकल को पूरा ध्यान से पढ़ें । यदि आप  BA 1st year  ka syllabus अच्छे तरीके से समझ लेते है तो आप अपने exam preparation को और बेहतर बना सकते हैं ।

और आपको बता दें कि यह जो सिलेबस आपको यहां पर बताया जा रहा है । वह सभी University मे लागू होगा क्योंकि जैसा कि आप जानते हैं कि नई शिक्षा नीति पद्धति में आप के सभी University में same syllabus है। तो आप किसी भी University से अपनी स्टडी कर रहे हैं तो आप यहां पर सिलेबस और उसकी pdf भी डाउनलोड कर पाएंगे साथ ही साथ हम यहां पर आपको BA 1st  year के question paper भी Provide किए जाएंगे

BA 1st History  year question paper 2023 के आपको यहां पर महत्वपूर्ण प्रश्न उपलब्ध कराएं ताकि आप इन प्रश्नों को पढ़कर आप अपने एग्जाम को और बेहतर बना सके । BA 1st  year syllabus ko जानना बेहद जरूरी है तभी आप इसे आसानी से पढ़ सकते हैं तो हम आपके लिए लाए हैं|

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BA 1st  year History Handwritten notes pdf, syllabus 2023


प्रश्न- 1. भारत वर्ष की अवधारणा कैसे और कब उभरी? वर्णन कीजिए। 


उत्तर- भारत अनंत काल से है, लेकिन भौगोलिक भारत का उल्लेख तो वैदिक ग्रंथों में भी नहीं मिलता, जो भारत की सबसे पुराने साहित्यिक कृतियाँ हैं। हालांकि वेदों में कई जगह भारतीय कबीले का उल्लेख अवश्य मिलता है। भारतवर्ष का पहला प्रमाण हमें ईसा पूर्व की पहली सदी में राजा खारवेला के दौर के एक शिलालेख में मिलता है। हम कह सकते हैं कि भारतवर्ष का आशय आज का उत्तर-भारत रहा होगा, हालांकि इसमें मगध शामिल नहीं था । महाभारत में जिस भारत का उल्लेख है, वो काफी बड़े इलाके में फैला हुआ था। लेकिन, इसमें भी दक्कन और सुदूर दक्षिणी भारत का उल्लेख नहीं मिलता।


पुराणों में भारतवर्ष का उल्लेख अनेक बार हुआ है। लेकिन, हर बार इसका दायरा अलग-अलग बताया गया है। कई पुराणों में इसे चन्द्रमा के आकार का बताया गया है, तो कई जगह इसका आकार तिकोना कहा गया है।


कई जगह इसे बेमेल चतुर्कोण के आकार का बताया गया है और कुछ पुराणों में इसे धनुष जैसा बताया गया है। लेकिन, ध्यान देने की बात ये है कि प्राचीनकाल के किसी भी भारतीय ग्रंथ में भारत को मातृभूमि या भारत माता नहीं कहा गया है।


भारत के स्त्री रूप यानी भारत माता का पहला उल्लेख हमें बंगाली लेखक द्विजेन्द्र रॉय की एक कविता में मिलता है। इसके बाद फिर हम बंकिम चटर्जी की आनंदमठ में भारत माँ का उल्लेख देखते हैं।


भारत का मानवीय स्वरूप हमें सन् 1905 में अवनीन्द्रनाथ टैगोर की बनाई पेंटिंग में दिखता है जिसमें भारत माँ को हिन्दू वैष्णव संन्यासिन के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। भारत माँ का पहला नक्शा हमें सन् 1936 में वाराणसी में बने भारत माता मंदिर में देखने को मिलता है।




प्रश्न-2. 'भारत' नाम की उत्पत्ति तथा भारतवर्ष को समझाइये।


उत्तर- भारत के दो अधिकारिक नाम हैं- हिन्दी में भारत और अंग्रेजी में इंडिया | इंडियन नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम "इंडस" से हुई है। श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार भारत नाम मनु के वंशज तथा ऋषभदेव के सबसे बड़े बेटे एक प्राचीन सम्राट भरत के नाम से लिया गया है। एक व्युत्पत्ति के अनुसार भारत (भा+रत) शब्द का आशय है आन्तरिक प्रकाश या विवेक-रूपी प्रकाश में लीन । एक तीसरा नाम हिन्दुस्तान भी है जिसका अर्थ हित की भूमि, यह नाम विशेषकर अरब तथा ईरान में प्रचलित हुआ। बहुत पहले भारत का एक मुंहबोला नाम सोने की चिड़िया भी प्रचलित था। संस्कृत महाकाव्य महाभारत में वर्णित है कि वर्तमान उत्तर भारत का क्षेत्र भारत के अन्तर्गत आता था। भारत को कई अन्य नामों से भारतवर्ष, आर्यावर्त, इंडिया, हिन्द, हिन्दुस्तान, जम्बूद्वीप आदि से भी जाना जाता है।


भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य, अंग्रेजी: Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार स्थित हैं। हिन्दी महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत तथा दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। दक्षिण पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है।



आधुनिक मानव या होमो सेपियन्स अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पचपन हजार वर्ष पहले आये थे। एक हजार वर्ष पहले ये सिंधु नदी के पश्चिमी हिस्से की तरफ बसे हुए थे जहाँ से इन्होंने धीरे-धीरे पलायन किया और सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में विकसित हुए। बारह सौ ईसा पूर्व संस्कृत भाषा सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुई थी और तब तक यहाँ पर हिन्दू धर्म का उद्भव हो चुका था और ऋग्वेद की रचना भी हो चुकी थी। 400 ईसा पूर्व तक आते-आते हिन्दू धर्म में जातिवाद देखने को मिल जाता है। इसी समय बौद्ध एवं जैन धर्म उत्पन्न हो रहे होते हैं। प्रारंभिक राजनीतिक एकत्रीकरण ने गंगा बेसिन में स्थित मौर्य और गुप्त साम्राज्यों को जन्म दिया। उनका समाज विस्तृत सृजनशीलता से भरा हुआ था।



प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में, ईसाई धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म और पारसी धर्म ने भारत के दक्षिणी और पश्चिमी तटों पर जड़ें जमा लीं। मध्य एशिया से मुस्लिम सेनाओं ने भारत के उत्तरी मैदानों पर लगातार अत्याचार किया, अंतत दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और उत्तर भारत को मध्यकालीन इस्लाम साम्राज्य में मिला लिया गया। पन्द्रहवीं शताब्दी में, विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत में एक लम्बे समय तक चलने वाली समग्र हिन्दू संस्कृति बनाई। पंजाब में सिख धर्म की स्थापना हुई। धीरे-धीरे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का विस्तार हुआ, जिसने भारत को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदल दिया तथा अपनी सम्प्रभुता को भी मजबूत किया। ब्रिटिश राज शासन सन् 1858 में शुरू हुआ। धीरे-धीरे एक प्रभावशाली राष्ट्रवादी आन्दोलन शुरू हुआ जिसे अहिंसक विरोध के लिए जाना गया और यह ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का प्रमुख कारक बन गया। सन् 1947 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य को दो स्वतंत्र प्रभुत्वों में विभाजित किया गया, भारतीय अधिराज्य तथा पाकिस्तान अभिराज्य, जिन्हें धर्म के आधार पर विभाजित किया गया।



सन् 1950 से भारत एक संघीय गणराज्य है। भारत की जनसंख्या सन् 1951 में 36.1 करोड़ से बढ़कर सन् 2011 में 1.211 करोड़ हो गई। प्रति व्यक्ति आय 564 से बढ़कर 51,498 हो गई और इसकी साक्षरता दर 16.6% से 74% हो गई। भारत एक तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं का केन्द्र बन गया है । अन्तरिक्ष क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय तथा अद्वितीय प्रगति की। भारतीय फिल्में, संगीत और आध्यात्मिक शिक्षाएँ वैश्विक संस्कृति में विशेष भूमिका निभाती हैं। भारत ने गरीबी दर को काफी सीमा तक कम कर दिया है। भारत देश परमाणु बम रखने वाला देश है। कश्मीर तथा भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन सीमा पर भारत का पाकिस्तान तथा चीन से विवाद चल रहा है ! लैंगिक असमानता, बाल शोषण, बाल कुपोषण, गरीबी, भ्रष्टाचार, प्रदूषण इत्यादि भारत के सामने प्रमुख चुनौतियाँ हैं। इसके 21.4% क्षेत्र पर वन है। भारत के वन्यजीव, जिन्हें परंपरागत रूप से भारत की संस्कृति में सहिष्णुता के साथ देखा गया है। इन जंगलों और अन्य जगहों पर संरक्षित आवासों में निवास करते हैं।



प्रश्न- 3. प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक साधनों का वर्णन कीजिये ।

             अथवा

प्राचीन भारत के इतिहास के प्रमुख साधनों का वर्णन कीजिये ।

           अथवा

प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न स्रोतों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।


उत्तर- प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के दो प्रमुख साधन हैं- प्रथम हैं साहित्यिक साधन और द्वितीय है पुरातात्विक साधन। इसमें पुरातात्विक साधनों का वर्णन निम्नानुसार है-



पुरातात्विक साधन- इसमें सभी प्रकार के वास्तु (प्रस्तर) शिल्प, धात्विक वस्तुयें जो या तो कहीं सुरक्षित रखी गई या जिन्हें भूमि के उत्खनन से प्राप्त किया गया है, सभी पुरातात्विक सामग्री के अन्तर्गत माने जाते हैं।



1. अभिलेख - अभिलेख प्राचीन भारत के इतिहास का पर्याप्त प्रमाणिक परिचय देते हैं। अभिलेख समकालीन होने से तत्कालीन लिपि, भाषाशैली, आधारवस्तु की श्रेष्ठता और कला तथा उसमें प्रयुक्त तकनीकी और विज्ञान का परिचय देते हैं। जैसे प्रस्तर अभिलेख, दीवार पर या किसी रंग से लिखे या खुदे अभिलेख आदि।



अभिलेख विशिष्ट घटना, व्यक्तियों के नाम और चरित्र, सीमा वर्णन तथा सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक दशा का वर्णन करते हैं। भारत में इस प्रकार के हजारों शिला, ताम्र, दीवार, स्तम्भ, मूर्ति, पात्र (बर्तन) लेख मिलते हैं। जैसे कलिंग का हाथी गुम्फा लेख, मेहरौली स्तम्भ लेख, ग्वालियर की मिहिरभोज की प्रशस्ति आदि


भारत के बाहर भारत से प्रत्यक्ष और परोक्ष अभिलेख भी भारत से सम्बन्ध, कालनिर्णय, समकालिकता आदि पर प्रकाश डालते हैं जैसे बोगज कोई, पर्सिपोलस, नक्सेरुस्तम आदि के लेख



2. स्मारक- प्राचीन भारतीय भवनों, मूर्तियों, भित्तिचित्रों और गुहालेखों आदि की भारत में कमी नहीं है। यद्यपि विदेशी (मुस्लिम और अंग्रेज) आक्रमणों में इनका बहुत बड़ी मात्रा में विनाश हुआ किन्तु फिर भी जो बचा और जो टूटी-फूटी दशा में अभी भी प्राप्त होता है, वह भारतीय इतिहास के अनेक गोपनीय पृष्ठ खोलता है तथा प्राचीन काल के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा तकनीकी ज्ञान को स्पष्ट करता है।


मन्दिर और स्तूप आदि स्मारक, धर्म, अध्यात्म, कला, विज्ञान का जहाँ परिचय देते हैं, वहीं सिन्धु क्षेत्र के उत्खनन में प्राप्त बर्तन भांडे, भवन, धातुयें, आभूषण, चित्रकला भी उपरोक्त मानव विकास के साथ नागरिक सभ्यता, भाषा, नगर निर्माण योजना आदि पर प्रकाश डालते हैं। पाटलिपुत्र के उत्खनन में मौर्य स्थापत्य की वस्तुयें मौर्य संस्कृति और इतिहास को प्रगट करती हैं। अजन्ता, एलोरा, महाबलीपुरम, नासिक कारले की गुफाओं के चित्र, भवन और लेख भारतीय इतिहास की विस्मृत कड़ियों का स्मरण करा देते हैं।.


भारत के बाहर दक्षिण पूर्व एशिया के मन्दिर और भवन भी न केवल भारतीय इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ते हैं बल्कि भारत से उनके धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक सम्बन्धों का विवेचन करने को बाध्य करते हैं। जावा, सुमात्रा, बाली, बोर्नियो, बोरोबुदूर, कम्बोज के अंगकोरवाट व अंगकोरथोम के भग्न अवशेष भारतीय इतिहास के प्रामाणिक साधन हैं।


3. मुद्रायें – प्राचीन भारतीय और विदेशी मुद्रायें भारतीय इतिहास की प्रामाणिक सामग्री हैं। इनसे कालनिर्णय करना बहुत सरल हो जाता है। मुद्राओं की ढलाई, तकनीकी, चित्र, घटना का उल्लेख, राजचिन्ह आदि का काल विशेष, व्यक्तिं विशेष तथा इतिहास का परिचय देने में अमूल्य योगदान है। तिलक ने इन्हें सर्वाधिक विश्वसनीय ऐतिहासिक साधन माना है। लगभग 300 ई. पू. से 300 ई. तक का प्रामाणिक भारतीय इतिहास मुद्राओं से ही प्राप्त होता है। ये मुद्रायें स्वर्ण, चांदी, तांबे और मिश्रित धातु की हैं। ये मुद्रायें इतिहास सम्बन्धी निम्न विवरण प्रस्तुत करती हैं-


(1) आर्थिक दशा (2) तिथि क्रम (3) धार्मिक स्थिति (4) कला (5) साम्राज्य सीमा (6) शासकों की रुचि (7) नवीन तथ्य (8) विदेशी सम्बन्ध



4. कलाकृतियाँ- गुफाओं, विशाल भवनों, ऐतिहासिक नगरों तथा विभिन्न स्थानों के स्मारक आदि में हजारों कलाकृतियाँ उपलब्ध हैं। इनमें बर्तन, मिट्टी के पत्थर, काष्ठ, धातुओं के पात्र, चित्र, मूर्तियाँ, खिलौने, प्रस्तर मूर्तियां, उभरी हुई कलाकृतियाँ, भित्ति चित्रों में रंगों का प्रयोग, कथात्मक मूर्तियों का क्रम, विजय स्तम्भ, राजचिन्ह और धार्मिक प्रतीक आदि प्रमुख हैं जो प्राचीन भारतीय समाज के चारों पुरुषार्थों पर प्रकाश डालते हैं।



5. उत्खनन से प्राप्त साधन- उपरोक्त ऐतिहासिक साधनों में से अधिकांश की प्राप्ति उत्खनन से हुई है। सिन्धु कालीन, मौर्यकालीन अवशेष, मुद्रायें, भवन आदि भूमि में दबे हुये थे। इनके अतिरिक्त मिट्टी की परतें, उनके रंग, गहराई तथा भौगोलिक संरचना से भी इतिहास की प्राचीनता का और विकासक्रम का अनुमान लगाया जा सकता है।



6.सारांश- प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के विपुल साधन-सामग्री की उपलब्धता जहां एक ओर भारतीयों की इतिहास प्रवृत्ति को दर्शाती है वहीं उसकी भग्नता उन निर्दयी तथा भारतीय सभ्यता संस्कृति के विनाशकर्ताओं की याद भी दिलाती है जो भारतीय इतिहास को नष्ट भी करते थे और भारतीयों पर इतिहास प्रवृत्ति के अभाव का आरोप भी लगाते थे।


किन्तु ऐतिहासिक सामग्री की प्रचुरता इतिहास के विद्वानों को चुनौतीपूर्ण आमंत्रण भी देती है कि वे भारत की सभ्यता और संस्कृति का क्रमबद्ध विकास, श्रेष्ठत्व और अवनति का इतिहास लिखें और भावी विकास की प्रेरणा दें।




प्रश्न- 4 .भारत में प्राचीन काल के समय मापन के इतिहास का वर्णन कीजिए।


प्रश्न 5. भारतीय इतिहास में वेदों और वैदिक साहित्य की भूमिका को समझाइये। 

अथवा

'आर्यों की भारतीय संस्कृति की देन' पर एक निबन्ध लिखिये । 

अथवा

'आर्य भारतीय संस्कृति के निर्माता थे।' स्पष्ट कीजिये.


प्रश्न-6. 'वैदिक साहित्य भारतीय साहित्य का गौरव है।' व्याख्या कीजिए।


प्रश्न - (7 ) भारत में धार्मिक प्रतिमानों को समझाइये ।


प्रश्न- (8) वेदों पर एक लेख लिखिये|


प्रश्न- (9) प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक साधन बताइये।




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