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त्रुटि से क्या तात्पर्य है यह कितने प्रकार की होती है? समझाइये। What is error, Types of Error in Hindi Bsc

त्रुटि से क्या तात्पर्य है यह कितने प्रकार की होती है? समझाइये। What is error, Types of Error in Hindi|

दोस्तों यदि आप गूगल पर सर्च कर रहे हैं कि त्रुटि से क्या तात्पर्य है ? त्रुटि कितने प्रकार की होती है?  तो इस आर्टिकल में आपको संपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी । दोस्तों आपको बता दें कि यहां पर आपको बिल्कुल सटीक जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी यदि आप BSC 1st year, BSC 2nd year या BSC 3rd year के  स्टूडेंट्स है तो यह आपके लिए यह बहुत ही मददगार आर्टिकल होने वाला है क्योंकि यह प्रश्न आप के पेपर में हर साल पूछा जाता है इसलिए इस प्रश्न को आप जल्दी से याद कर लें और यहां पर आपको सभी महत्वपूर्ण प्रश्न ही उपलब्ध कराए जाते हैं तो चलिए देखते हैं क्या है - त्रुटि कितने प्रकार की होती है?


प्रश्न-1  त्रुटि से क्या तात्पर्य है यह कितने प्रकार की होती है? समझाइये। 

अथवा

मात्रात्मक विश्लेषण में होने वाली त्रुटियों का कैसे वर्गीकृत किया गया है? उदाहरण दीजिये।

[ इन्दौर 2000,01 ]




उत्तर- त्रुटि (Error)- त्रुटि से तात्पर्य वास्तविक मान एवं मापित मान का अन्तर है। किसी भी मापन में त्रुटि न हो, ऐसा सम्भव नहीं है चाहे कार्य करने वाला व्यक्ति कितना ही निपुण क्यों न हो एवं प्रयुक्त उपकरण भी उच्च क्वालिटी के हों। किन्तु ऐसे उपाय किये जा सकते हैं, जिससे त्रुटि न्यूनतम हो। अतः ऐसे करने के पूर्व अपने कार्य में हुई त्रुटि के आकार को जानना जरूरी है। यह अवलोकित एवं सत्य मान का अन्तर होता है। चूंकि वास्तविक मान कभी प्राप्त नहीं होता, क्योंकि कुछ न कुछ त्रुटि रहती है। अतः मानक मान (standard value) को ही सत्य मान लिया जाता है।.


त्रुटियों के प्रकार (Types of Error) - त्रुटियों को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-


1. निर्धारित या सीमित त्रुटि (Determinate error)- इन त्रुटियों को यथाक्रम या क्रमानुसार त्रुटियाँ (Systematic error) भी कहते हैं। यह वे त्रुटियाँ होती हैं जिन्हें ज्ञात "किया जा सकता, चाहे कारण कुछ भी हो तथा पूर्ण तैयारी एवं सावधानीपूर्वक कार्य करके न्यूनतम किया जा सकता है। सीमित त्रुटियाँ मुख्यतः निम्न पाँच प्रकार की होती हैं-


(i) व्यक्तिगत त्रुटि (Personal error) - यह कार्य करने वाले व्यक्ति की अपनी कार्य पद्धति में गलती के कारण होती है, जिसे विश्लेषक अनुमापन करते समय अंतिम बिन्दु पर सूचक के रंग परिवर्तन का निर्णय लेने पर असमर्थ रहता है। अतः वह आवश्यकता से कुछ अधिक अनुमापन विलयन मिला देता है। ऐसा करने से वह हमेशा धनात्मक त्रुटि (Positive error) करता है।


इसी प्रकार यदि कोई विश्लेषक भारमितीय आंकलन में या तो अवक्षेप को पूर्ण रूप से नहीं धोता है, अथवा उचित तापमान पर अवक्षेप को गर्म नहीं करता, उस अवक्षेप को पूर्ण स्थानान्तरण नहीं करता उस समय भी वह व्यक्तिगत त्रुटि करता है। इन त्रुटियों का विश्लेषण स्वयं ही आसानी से पहचान कर पूरी तरह दूर कर सकता है या कम कर सकता है।


(ii) यांत्रिक या अभिकर्मक त्रुटि (Instrumental or Reagent error ) - 

इस प्रकार की त्रुटि यंत्रों में खराबी जैसे तुला का दोषपूर्ण निर्माण, ब्यूरेट या पिपेट का अशुद्ध पाठ्यांकन आदि के कारण होती है। उदाहरणार्थ यदि प्रयुक्त ब्यूरेट अच्छी क्वालिटी की नहीं है, तो यह तो सकता है कि जो पाठ्यांक 10 मिली ले रहे हैं उसका वास्तविक आयतन 9.5 मिली ही हो तब प्रत्येक बार 0.5 की त्रुटि होती है, क्योंकि पाठ्यांक प्रत्येक बार 0.5 मिली कम होता है। इस प्रकार यदि प्रयुक्त अभिकर्मक शुद्ध नहीं होता तब भी परिणाम शुद्ध प्राप्त नहीं होंगे। अतएव इन त्रुटियों को अच्छी क्वालिटी के उपकरण एवं शुद्ध अभिकर्मक प्रयुक्त करके दूर किया जा सकता है।


(iii) विधि की त्रुटियाँ (Error of method) - ऐसी त्रुटियाँ अपूर्ण अभिक्रिया भारमितीय विश्लेषण में अवक्षेप के अपघटन आदि के कारण होती है। उदाहरणार्थ वैश्लेषिक

2022 रसायन विज्ञान (द्वितीय) 31 विधियों में गणना यह मानकर की जाती है कि रासायनिक अभिक्रिया पूर्ण हो चुकी है। यदि किसी समय अभिक्रिया केवल 95% पूर्ण होती है तब आशानुसार परिणाम प्राप्त नहीं होता है। यह त्रुटि भी एक तरफ (One sided) होती है तथा इसे दूर करने के लिये ऐसी प्रयोगात्मक परिस्थितियाँ बनानी चाहिये कि अभिक्रिया पूर्ण हो जाये।


(iv) योगात्मक त्रुटि (Additive error)- अनेक बार निर्धारण के क्रम में त्रुटि का मान स्थिर रहता है तथा यह विश्लेषण में प्रयुक्त सैम्पल की मात्रा पर निर्भर नहीं करता है, इस प्रकार की त्रुटि को योगात्मक त्रुटि कहते हैं। उदाहरणार्थ एक अनुमापन में अंतिम बिन्दु पर रंग परिवर्तन को अधिक स्पष्ट रूप से देखने के लिये 0.1 मिली अनुमापक अतिरिक्त मिलाया जाता है इसलिये अंतिम बिन्दु त्रुटि 0.1 मिली होती है। यदि मानक मान 10 मिली है तब अवलोकित मान 10.1 मिली होगा अर्थात् त्रुटि 0.1 मिली की होगी यदि अनुमापन हेतु सेम्पल का आयतन दुगुना कर दिया जावे तब मानक मान 20.0 मिली होगा जब अवलोकित मान 20.1 मिली होगा फिर भी त्रुटि 0.1 मिली होगी। इस प्रकार त्रुटि प्रत्येक बार समान रहेगी।


(v) आनुपातिक त्रुटि (Proportional error)- इस प्रकार की त्रुटि का आकार सेम्पल के आकार पर निर्भर करता है। 


2. अनिश्चित या असीमित त्रुटियाँ: इस प्रकार की त्रुटियों को अनियमित (Random) अथवा घटनापूर्ण (Accidental) त्रुटि भी कहते हैं। इस प्रकार की त्रुटि का कारण ज्ञात भी हो सकता है और नहीं भी। जहाँ सीमित त्रुटियाँ एक तरफा होती हैं जिन्हें सावधानीपूर्ण कार्य करने पर हटाया जा सकता है वहीं असीमित त्रुटियाँ एक तरफा नहीं होती हैं अतः इन्हें क्वालिटी उपकरण, शुद्ध अभिकर्मक एवं सावधानीपूर्वक कार्य करके भी इन्हें कम नहीं किया जा सकता है। अतः यह वह त्रुटियाँ हैं जिन पर विश्लेषणक का कोई नियंत्रण नहीं होता है। जब समान मात्रा को बार-बार लेकर विश्लेषण करते हैं तब भी प्रत्येक अवलोकित मान एक से प्राप्त नहीं होते हैं। यह मान एक ही विधि से एक ही उपकरण पर समान परिस्थितियों में कार्य करने पर भी कुछ अन्तर लिये होता है। यह अवलोकित मान मानक मान से कुछ भिन्न होता है। इस प्रकार की त्रुटि ही अनश्चित या अनियमित त्रुटि होती है। त्रुटियों का न्यूनतमीकरण (Minimisation of errors) - प्रत्येक विश्लेषक यह जानने का प्रयास अवश्य करता है कि उसके द्वारा किये कार्य में कितनी त्रुटि है तथा इन्हें कैसे कम किया जा सकता है। नियमित या सीमित त्रुटियों को निम्नलिखित सावधानियों द्वारा कम किया जा सकता है- 

(i) उपकरणों का शुद्ध पाठ्यांक 

(ii) रिक्त निर्धारण (Blank determination) 

(iv) स्वतंत्र विधि का प्रयोग। 




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