Class 12th Hindi final Exam 2024 important कवि परिचय।
तुलसीदास [2020,17,14]
सूरदास [2018,15,13]
मैथिलीशरण गुप्त [2019,12]
कबीर दास [ 2016,12]
जयशंकर प्रसाद 2020 , 19
काव्य गुण कितने प्रकार के होते हैं कक्षा 12 hindi
सूरदास
दो रचनाएं-
सूर सागर
सूर सुरावली
साहित्य लहरी
भाव पक्ष -सूर के काव्य में भाव का सागर भरा पड़ा है ।उसकी भाव पक्ष की मुख्य विशेषताएं हैं - 1-सूर को वात्सल्य सम्राट कहा जाता है ।
2-वियोग श्रृंगार का मार्मिकता के साथ चित्रण किया है ।
3 -उनका बाल वर्णन मनोवैज्ञानिक है ।
कला पक्ष -सूर की रचनाओं में भाव पक्ष एवं कला पक्ष में मणिकांचन सहयोग है ।
सूर ने अपने भाव को ब्रजभाषा के माध्यम से व्यक्त किया है ।उनकी भाषा में कोमल कांत पदावली सरलता और प्रभाव है । उपमा , रुपक और उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग उन्होंने प्रचुर मात्रा में किया है ।
साहित्य में स्थान -सूरदास गीती काव्य परंपरा के सशक्त गीतिकार है ' वो वात्सल्य और श्रंगार के अप्रितम गायक भी हैं ।हिंदी में भ्रमर गीत परंपरा के प्रवर्तक हैं ।
अपनी काव्य कला और साहित्यिक प्रतिभा के बल पर वे हिंदी साहित्य के शुभ माने जाते हैं ।
तुलसीदास
दो रचनाएं-
श्रीरामचरितमानस
दोहावली
कवितावली
विनय पत्रिका।
मैथिली शरण गुप्त
दो रचनाएं-
साकेत
पंचवटी
जयद्रथ वध
जय भारत
चंद्रहास
कबीर दास
दो रचनाएं-
कबीर की प्रमाणिक उपलब्ध कृति 'बीजक' है
इसके साखी ,सबद , रमैनी तीन भाग
Class 12th Hindi final exam 2021 important लेखक परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल [2020,17,15,12
उषा प्रियवंदा [2018,16]
डॉ रघुवीर सिंह [2019,13,12]
रामनारायण उपाध्याय [2018,14]
शरद जोशी [ 2019,2020]
लेखक परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल(2019,10,12, 15,17)
दो रचनाएं- चिंतामणि,त्रिवेणी
भाषा शैली - शुक्ल जी की भाषा परिष्कृत, प्रोढ़ एवं साहित्यिक खड़ी बोली है । शुक्ल जी की भाषा में व्यर्थ का आडंबर नहीं मिलता । शुक्ल जी की शैली में भारतीय पाश्चात्य शैलियों का समन्वय है फिर भी उन्होंने इससे हटते हुए अपनी शैली को भी अपनाया है । उनकी शैली समास के रूप से प्रारंभ होकर व्यास शैली के रूप में समाप्त होती है अर्थात एक विचार को सूत्र रूप में कहकर फिर उसकी व्याख्या कर देते हैं ।
साहित्य में स्थान- शुक्ल जी को हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ आलोचक, निबंधकार, इतिहासकार एवं साहित्यकार के रूप में याद किया जाता है । इनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही उनके समकालीन हिंदी गद्य के काल को शुक्ल युग के नाम से संबोधित किया जाता है ।