Ba 1st Year Political science Notes Pdf in hindi|Ba first year political science Books Pdf 2024
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Ba 1st year political science Notes PDF, Syllabus, Important questions For All Universities:
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Ba 1st year political science notes pdf, syllabus 2024:
Ba 1st year political science Notes PDF in Hindi Paper 1 2024-25
Unit 5
Unit -1
प्रश्न-1 आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त की परिभाषा कीजिये। राजनीति विज्ञान में राजनीतिक सिद्धान्त की क्या भूमिका है?
अथवा
राजनीतिक सिद्धान्त क्या हैं? क्या आप अल्फ्रेड कानून के इस मत से सहमत हैं कि राजनीतिक सिद्धान्त निरन्तर पतन की ओर अग्रसर हैं?
उत्तर-अपने अस्तित्व की रक्षा एवं विषय के विकास की दृष्टि से राजनीति विज्ञान को एक सामान्य सिद्धान्त (General theory) की सबसे अधिक आवश्यकता है। कैटिलन ने लिखा है कि, "किसी भी विज्ञान की परिपक्वता उसके सामान्य सिद्धान्त की एकरूपता एवं अमूर्तिकरण की स्थिति से जानी जाती है।" डेविड ईस्टन ने राजनीति विज्ञान में सिद्धान्त की भूमिका एवं महत्व पर सबसे अधिक जोर दिया है। उसी ने सर्वप्रथम राजनीति विज्ञानियों का ध्यान राजनीतिक सिद्धान्त या राज्य सिद्धान्त (Political theory) की आवश्यकता की ओर खींचा है। उसके अनुसार किसी भी विज्ञान की अभिवृद्धि आनुभाविक अनुसन्धान एवं सिद्धान्त दोनों के विकास एवं उनके मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पर निर्भर करती है।
इसके बिना राजनीति विज्ञान अस्तित्वहीन है। यह व्यक्तित्वहीन भी है तथा कथित राजनीति विज्ञान की स्थिति बड़ी शोचनीय है। रॉबर्ट डहल ने लिखा है कि, “आंग्लभाषी जगत् में राजनीतिक सिद्धान्त मर चुका है। साम्यवादी देशों में वह बन्दी है और अन्यत्र मर रहा है। मीहान के अनुसार, "एक व्याख्यात्मक सिद्धान्त के बिना अपने वातावरण को चाहे वह भौतिक अथवा सामाजिक हो, नहीं समझा जा सकता। उसी के माध्यम से हमें जगत् का यथार्थ, विश्वसनीय, संचरणीय एवं संचय योग्य ज्ञान प्राप्त हो सकता है।"
एक वैज्ञानिक राज्य सिद्धान्त की व्यावहारिक एवं शैक्षिक दोनों दृष्टियों से आवश्यकता है। उस पर ही व्यापक मानव मूल्यों की खोज-प्रतिपादन, स्पष्टीकरण एवं प्रतिरक्षा का दायित्व डाला गया है। वही लोकतंत्र, समाजवाद आदि की दुर्बलताओं का विश्लेषण करके समस्याओं का वास्तविक समाधान रख सकता है। उसके समक्ष नवोदित देशों की राजनीति तथा उनकी विकास सम्बन्धी समस्याओं का क्षेत्र चुनौती बनकर खुला पड़ा है। राज्य सिद्धान्त तेजी से बदलते हुये मानव-समाज को सही दिशा में जाने के लिये मार्गनिर्देश कर सकता है। शैक्षणिक दृष्टि से राज्य सिद्धान्त बढ़ते हुये अति-तथ्यवाद तथा आंकड़ेबाजी से निबटने मे सहायता दे सकता है
राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त विकसित न होने के कारण- राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त विकसित न हो पाने के कई कारण हैं। इनमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 1 राजनीति शास्त्रियों को अपनी विषय-वस्तु राजनीति का ज्ञान न होना।
2.वैज्ञानिक राजनीति शास्त्र की धारणा का स्पष्ट न होना। 3. राजनीतिज्ञों (Politicians) की राजविज्ञान में अरुचि 4. उपलब्ध राजविज्ञान का विशिष्ट संस्कृति से प्रभावित होना।
5. इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि राजविज्ञान की उपयुक्त शोध पद्धतियों (Methods) तथा प्रविधियों (Techniques) का अभाव होना।
6. इसका एक कारण यह भी है कि राज विज्ञानियों को राजनीति (Politics) का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता है। वे यह नहीं जानते कि वास्तव में राजनीति कैसे चलती है या इसका व्यावहारिक स्वरूप क्या है ?
7. इसका एक कारण यह भी है कि पुराने राजवेत्ताओं में नई आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालने की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है।
8. इसके सिद्धान्त निर्माण न हो पाने का एक कारण यह भी है कि अब तक दुनिया के तमाम राजनीतिशास्त्री औपचारिक संस्थाओं, अमूर्त धारणाओं और मूल्यों तथा आदर्शात्मक सुधारों तक ही सीमित रहे हैं।
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि राज सिद्धान्त का अर्थ क्या है ? इसका अर्थ जानने के लिये इसकी परिभाषायें जानना आवश्यक है।
राजनीतिक सिद्धान्त का अर्थ - राजनीतिक सिद्धान्त राजनीतिक घटनाओं, तथ्यों और अवलोकनों पर आधारित निष्कर्षों के समूह को कहते हैं। ये निष्कर्ष परस्पर सम्बद्ध होते हैं तथा इनके आधार पर वैसे ही तथ्यों या घटनाओं की व्याख्या या पूर्व कथन किया जा सकता है। नवीन घटनाओं एवं तथ्यों के सन्दर्भ में उक्त निष्कषों एवं उपलब्धियों में सुधार या संशोधन किया जाता है। अनुभव पर आधारित तथ्यों की जांच की जा सकती है तथा उन्हें दूसरे व्यक्तियों तक संचारित या प्रेषित किया जा सकता है। इस तरह राज सिद्धान्त राजनीति से सम्बन्धित निष्कर्षो का समूह है।
काईडन ने सिद्धान्त को मानव जाति की प्रगति का आवश्यक उपकरण माना है। इसे बौद्धिक आशुलिपि कहा गया है जिसके द्वारा शीघ्र और प्रभावपूर्ण ढंग से विचार विनिमय किया जा सकता है। एक बार अवलोकन से प्राप्त निष्कषों को सिद्धान्त बनाने के पश्चात् दुबारा सीखने की आवश्यकता नहीं रहती।
मीहान के मतानुसार सिद्धान्त मूल रूप से एक विचारात्मक उपकरण है जिससे राजनीतिक जीवन के तथ्यों को सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध किया जाता है। इसके द्वारा पृथक् दिखने वाली प्रेक्षणीय घटनायें एक साथ लायी एवं सुव्यवस्थित ढंग से परस्पर सम्बद्ध कर दी जाती हैं।
कार्ल पोपर ने सिद्धान्त को एक प्रकार का जाल (Net) बताया है जिससे जगत् (Universe) को पकड़ा जाता है, ताकि उसको समझा जा सके। उसके अनुसार सिद्धान्त एक अनुभवपरक व्यवस्था के प्रारूप (Model) की अपने मन की आंख पर बनायी गई रचना है।
वस्तुतः 'सिद्धान्त' शब्द के अनेक अर्थ हैं। कोहन के अनुसार "यह शब्द एक खाली चैक समान है जिसका सम्भावित मूल्य उसके उपयोगकर्ता एवं उपयोग पर निर्भर है।" आर्नोल्ड ब्रेट (Amold Brechet) के अनुसार, "वह एक ऐसी प्रस्तावनाओं का सेट है जो किसी
विषय-सामग्री (data) के सन्दर्भ में प्रत्यक्षतः प्रेक्षित या अप्रेक्षित या प्रकट नहीं होने वाले अन्तःसम्बन्धों या किसी वस्तु की व्याख्या करने के लिये निर्मित किया जाता है। केवल वर्णन या प्रस्तावना या लक्ष्यों का प्रस्तुतिकरण, भविष्य कथन या मूल्यांकन सिद्धान्त नहीं कहलाता। सिद्धान्त व्याख्या से विस्तृत होता है। यह एक विश्लेषणात्मक युक्ति है जिसकी सहायता से तथ्यों की व्याख्या तथा उनके विषय में पूर्व कथन किया जा सकता है। इसमें परस्पर सम्बद्ध नियमों या निष्कर्षो का समूहीकरण होता है। संक्षेप में सिद्धान्त सामान्यीकरणों या व्याख्यात्मक नियमों का सुगठित सेट होता है जो ज्ञान के किसी क्षेत्र की व्याख्या कर सके। उसमें नवीन परिकल्पनाओं या प्राक्कल्पनाओं (Hypothesis), व्याख्याओं तथा नियमों को विकसित करने की क्षमता होती है। उसमें उपलब्ध व्याख्याओं, नियमों को विकसित करने की क्षमता होती है। वह उपलब्ध व्याख्याओं, नियमों तथा निष्कर्षो का एकीकरण करने की क्षमता भी रखता है।" क्वीन्टन की दृष्टि से सिद्धान्त विभिन्न संशिलष्ट रीतियों तथा तार्किक ढंग से विवरणों की व्यवस्था या समुच्चय (Set) होते हैं। पोल्सवी ने वैज्ञानिक सिद्धान्त को सामान्यीकरणों के निर्गमनात्मक जाल के रूप में, जिससे ज्ञात घटनाओं के कतिपय प्रकारों की व्याख्या अथवा पूर्व कथन किया जा सकता हो, कहा है। ऐसी अन्तःसम्बन्धित अवधारणायें जिन्हें वैज्ञानिकों के प्रेक्षण द्वारा सुझाई गई प्रस्तावनाओं में संयुक्त कर दिया गया हो, सिद्धान्त का निर्माण करती हैं।
पारसन्स के मतानुसार ज्ञात तथ्यों के सामान्यीकरण से सिद्धान्त का जन्म होता है। प्रत्येक सिद्धान्त-व्यवस्था में आनुभाविक सन्दर्भ वाली तर्क-संगत, अन्तः निर्भर एवं सामान्यीकृत अवधारणाओं का समूह होता है।
इस प्रकार सम्बद्ध तथ्यों के प्रेक्षण एवं परीक्षण के आधार पर कतिपय अवधारणाओं का विकास किया जाता है, फिर इन अवधारणाओं को तर्कपूर्ण ढंग से संयुक्त करके सम्पूर्ण घटना का सामान्यीकरण किया जाता है. ऐसे अनेक सामान्यीकरणों को सम्बद्ध करके सिद्धान्त निर्माण किया जाता है।
कोहन ने सिद्धान्तों को चार शीर्षकों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया है-
1.विश्लेषणात्मक सिद्धान्त (Analytical theories), 2. आदर्शात्मक सिद्धान्त (Normatic theories),
3. वैज्ञानिक सिद्धान्त (Scientific theories),
4. आध्यात्मिक सिद्धान्त (Metaphysical theories)
इनमें राजनीति विज्ञान का निकट सम्बन्ध वैज्ञानिक सिद्धान्तों से है। वैज्ञानिक सिद्धान्त सार्वभौमिक निष्कर्ष या सामान्यीकरण बताता है, ये आनुभाविक या प्रयोग सिद्ध होते हैं, ऐसे सिद्धान्त घटनाओं के तथा कारकों के अवलोकन पर आधारित होते हैं।
ये ऐसी अन्तःसम्बन्धित एवं परीक्षित अवधारणाओं पर आधारित होते हैं जिनके आधार पर राजनीतिक व्यवहार या राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक परिवर्तन से सम्बन्धित आनुभाविक या प्रयोग सिद्ध सामान्यीकरण निकाले जा सकें।
वर्तमान स्थिति किन्तु यह बात साफ तौर पर स्पष्ट हो जानी चाहिये कि वर्तमान में राजनीति विज्ञान के पास ऐसा कोई वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धान्त नहीं है। सम्भवतः ऐसा सिद्धान्त विकसित होने में काफी समय लगेगा। समकालीन राजनीतिशास्त्री अब ऐसे राजनीतिक सिद्धान्त विकसित करने के प्रति जागरूक हो गये हैं। इस दिशा में डेविड ईस्टन ने सबसे अधिक कार्य किया है।
यद्यपि आजकल वर्तमान राजनीतिक चिन्तन में कोई वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धान्त नहीं है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अल्फ्रेड कानन के इस मत से सहमत हो जायें कि राजनीतिक सिद्धान्त निरन्तर पतन की ओर अग्रसर हैं। वास्तव में राजनीति विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिकता लाने के लिये डेविड ईस्टन, आमण्ड इत्यादि विज्ञानी प्रयत्नशील हैं। यह प्रक्रिया अभी चल रही है अतः इसे पतन की ओर अग्रसर नहीं माना जा सकता।